एक बार एक बहराम नाम का राजा रहता था। वह जंगल में इधर उधर शिकार करने जाता था। बहराम के पिता ने उससे कहा था कि बेटा तुम तीन दिशाओं में जा सकते हो लेकिन चौथी दिशा में मत जाना। एक राक्षसों का मुखिया जिसका नाम धोलादेव था। वह भी जंगल में रहता था। एक दिन बहराम ने सोचा कि तीन दिशाओं में तो जाकर देख लिया अब एक ही दिशा बची है जिसके लिए पिताजी ने मना किया था। बहराम सोचने लगा कि पिताजी ने मुझे इस दिशा में जाने से क्यों रोका है इसमें कोई तो राज वह उस दिशा में जाकर पता लगाना चाहता था।
उसने थोड़ी देर सोचा और उस दिशा में जाने की योजना बनाई जिसमें उसके पिता ने जाने को मना किया था। अब वह उस दिशा की तरफ चल दिया। धौलादेव राक्षस जो कि बहराम का बहुत समय से इंतेज़ार कर रहा था। उसको अपनी तरफ आता देख बहुत खुश हुआ। धौलादेव ने हिरण का रूप धारण कर लिया और बहराम राजा के सामने आ गया। धौला देव बहराम को अपना दोस्त बनाना चाहता था। धौला देव ने हिरण बनकर बहराम के सामने आया तो बहराम ने हिरण की सवारी करने की सोची। वह उस हिरण के ऊपर बैठ गया।
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वह हिरण उसको वहां पर ले गया जहां पर बहुत सारे राक्षस रहते थे। तब उसने सोचा कि पिताजी ने सही कहा था और यह कोई हिरण नहीं है दानव राक्षस है जो मुझे इन राक्षसों के पास ले आया है। अब वहां पर जो राक्षस थे उन्होंने बहराम को चारो तरफ से घेर लिया और उसे खाने के लिए चक्कर लगाने लगे कि कब इसे धौला देव छोड़ कर जाए व हम इसको मार डालें। राक्षस 9 फीट के लंबे और बहुत भारी थे और बहराम बेचारा 7 फीट का था। इस कारण सभी राक्षस उसका मजाक उड़ा रहे थे।
धौला देव ने जब देखा कि बहराम की जान खाते में है तो उसने राक्षसों से कहा कि अगर तुमने इससे कुछ कहा या इसको मारने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मैं इससे मित्रता करने के लिए बहुत दिनों से तलाश कर रहा था लेकिन यह मुझे आज मिला है। अब मैंने इसको अपना मित्र बना लिया है और तुम इसको डरा रहे हो। बहराम को आश्चर्य हुआ कि यह मुझे अपना मित्र क्यों बनाना चाहता है। बहराम ने मन में कहा खैर छोड़ो कम से कम जान तो बची। बहराम मैं भी धौलादेव को अपना मित्र मान लिया। एक दिन धोला देव के भाई की लड़की की शादी थी वह दूसरे स्थान पर रहता था। धोला देव भी शादी में जाने की तैयारी कर रहा था तभी वहां पर बहराम आ गया और कहने लगा कि मुझे भी आपके साथ शादी में जाना है।
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धोला देव ने कहा कि – नहीं तुम वहां नहीं जा सकते क्योंकि तुम्हें वहां पर खतरा हो सकता है।
बहराम ने कहा कि – लेकिन मुझे यहां भी खतरा ही है।
धौला देव ने कहा कि – नहीं यहां तुमसे कोई भी कुछ नहीं कह सकता। मैं तुम्हे मेरा एक सिर का बाल देता हूं। जब भी तुम पर कोई भी परेशानी आए तो इस बाल को आग के सामने कर देना मैं तुरंत आपके पास आ जाऊंगा।
बहराम ने कहा कि – लेकिन मुझे यहां भी खतरा ही है।
धौला देव ने कहा कि – नहीं यहां तुमसे कोई भी कुछ नहीं कह सकता। मैं तुम्हे मेरा एक सिर का बाल देता हूं। जब भी तुम पर कोई भी परेशानी आए तो इस बाल को आग के सामने कर देना मैं तुरंत आपके पास आ जाऊंगा।
धोला देव शादी में चला गया और बहराम बाग में इधर-उधर घूमने लगा। घूमते-घूमते वह किसी रानी परी के पास जा पहुंचा बहराम भी बहुत सुंदर लड़का था और रानी परी भी बहुत सुंदर थी। वह धौला देव की लड़की थी। बहराम और रानी परी ने एक दुसरे को पसंद कर लिया और विवाह कि सोची। लेकिन रानी परी ने बहराम से कहा कि धोला देव से तुम मुझे मांगने से पहले उससे वचन ले लेना नहीं तो वह हमारे विवाह के लिए कभी राजी नहीं होंगे। अगर तुमने सीधे ही मुझे मांगा तो वह हम दोनों को मार डालेगा। बहराम ने कहा ठीक है मैं ऐसा ही करूंगा।
बहराम ने कुछ देर सोचा और उसके दिमाग में एक विचार आया उसने अपने आपको गंदी कीचड़ में कर लिया तथा कीचड़ में लोट – पोट मारने लगा। पूरा कीचड़ में होने के बाद उसने धोला देव ने जो बाल दिया था उसको सूर्य की रोशनी की तरफ कर दिया। धोला देव शादी में भौजन परोश रहा था उसको पता चल गया कि बहराम परेशानी में है वह भोजन के थाल को हाथ में लिए हुए बहराम के पास आ पहुंचा।
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बहराम की हालत देखकर धोला देव ने पूछा कि तेरा यह हाल किसने किया है।
बहराम ने कहा कि पहले तुम वचन दो की तुम मुझे मारोगे नहीं।
धोला देव ने कहा कि में वचन देता हूं अब बताओ कि तुम्हारा यह हाल किसने किया है।
बहराम ने कहा कि मेरा हाल किसी ने भी नहीं बिगड़ा है बल्कि मुझे रानी परी से विवाह करने के लिए ये नाटक करना पड़ा। मुझे रानी परी चाहिए।
धोला देव ने कहा कि में वचन देता हूं अब बताओ कि तुम्हारा यह हाल किसने किया है।
बहराम ने कहा कि मेरा हाल किसी ने भी नहीं बिगड़ा है बल्कि मुझे रानी परी से विवाह करने के लिए ये नाटक करना पड़ा। मुझे रानी परी चाहिए।
धोला देव को बहराम और रानी परी पर बहुत क्रोध आ रहा था लेकिन वह अपने वचन को भी नहीं तोड़ सकता था। इसलिए उसने रानी परी को बहराम को सौंप दिया और दोनों का विवाह करा दिया।
धोला देव ने बीस राक्षसों को बुलाया और कहा कि तुम जाओ बहराम और रानी परी के साथ। इनको वहीं पर छोड़ कर आओ जहां से में बहराम को लाया था। अब बहराम और रानी परी राक्षसों के साथ अपने राजमहल में जा पहुंचा। लेकिन उसने वहां पर देखा कि कोई और राजा गद्दी पर बैठा हुआ है। उसने लोगों से पूछताछ करके पता लगा लिया कि उस राजा ने उसके पिताजी को मारकर गद्दी पर कब्जा कर लिया है। बहराम के पास सैनिक भी नहीं थे उस राजा से लडने के लिए इसलिए वह भेष बदल कर महल के पास ही रहने लगा।
जो राजा गद्दी पर बैठा था उसके सैकड़ों रानियां थीं लेकिन जिसको बहराम लाया था उसकी तरह सुंदर कोई भी नहीं थी। जब उस राजा से लोग कहने लगे कि आपकी रानियों में से एक भी स्त्री ऐसी नहीं है जैसी बहराम लाया है। राजा को यह सुनकर बहुत बुरा लगा और कुछ सैनिकों को उस रानी परी को बुलाने के लिए भेज दिया लेकिन रानी परी ने आने से इन्कार कर दिया।
जब वह नहीं आयी तो राजा स्वयं उसके पास गया और बोला मैंने तुमको कितनी बार बुलावा भेजा लेकिन तुम क्यों नहीं आई और तुम्हे यहां पर कौन लाया है। रानी परी ने कहा कि मुझे यह पर बहराम लाया है जो इस महल का राजा है तुमने उसके महल पर कब्जा कर लिया है। अब सभी लोगों को पता चल गया कि हमारा पहला राजा बहराम आ गया है। बहराम की मां भी अपने बेटे को देखने के लिए तड़प उठी उसने लोगों से कहा कि मुझे अपने बेटे के पास पहुंचा दो। सभी लोगों ने अपने पहले राजा बहराम का साथ दिया इसलिए नए राजा को बहराम ने मार दिया और फिर से अपने राजमहल का राजा बन गया। अब रानी परी और राजा बहराम अपनी मां के साथ मजे से रहने लगे।
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