तोरण इतना नीचे बना हुआ था कि राजा का मुकुट गिर गया। राजा के शांत चेहरे पर त्योरी चढ़ गई। राजा ने कहा, “यह तो अपमान है। इस तोरण का निर्माण करने वाले प्रमुख निर्माता को फांसी पर लटकाया जायेगा।“ इसके लिए रस्सी और फाँसी के तख्ते का इंतजाम भी कर लिया गया।
तोरण के प्रमुख मिस्त्री (निर्माणकर्ता) को पेश किया गया। वह राजा के पास से गुजरा और जोर से बोला, “हे राजन ! यह कारीगरों का दोष है”
“ओह!”, राजा ने कहा और सारी कार्यवाही रुकवा दी। न्यायप्रिय राजा होने के कारण अब वह और भी अधिक शांत हो गया था। वह बोला, “इसकी बजाय मुझे सभी कारीगरों को फांसी पर चढ़ाना होगा।“ कारीगर (मजदूर) हैरान प्रतीत हो रहे थे और बोले, “हे राजन ! आपको मालूम नहीं की ईंटे ही गलत आकार की बनी हुई थी।
राजा ने कहा कि “राजमिस्त्रियों को बुलाओ!” राजमिस्त्री कांपते हुए वहां खड़े हो गये और कहने लगे- “यह दोष तो वास्तुकार का था जिसने ईंट का सांचा गलत बनाया था। वास्तुकार को बुलाया गया। “ अच्छा तो वास्तुकार”, राजा ने कहा, “ मेरी आज्ञा है की तुम्हे फांसी दी जाये।“
वास्तुकार ने कहा. “हे राजन! आप एक छोटी सी बात भूल गए हैं। जब सारी योजनाएँ बनाकर हमने आपको दिखाई थी तो आपने उसमे कुछ बदलाव कर दिए थे।”
राजा ने यह सब सुना। राजा आगबबूला हो गया। वस्तुतः उसका दिमाग ख़राब हो गया था, किन्तु एक न्यायप्रिय व शांत राजा होने के कारण वह बोला, “यह तो पेचीदा मामला है। मुझे कुछ सलाह की जरुरत है। मुझे इस देश का सबसे अधिक बुद्धिमान और समझदार आदमी लाकर दो।“ सबसे बुद्धिमान आदमी की तलाश की गयी और उसे लाकर शाही दरबार में पेश कर दिया गया।
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वह इतना बूढा था कि न तो चल सकता था और न देख सकता था। बूढा व्यक्ति होने के कारण वह समझदार था। जब उसको सारा मामला बताया गया तो उसने कांपती हुई आवाज में कहा, “दोषी को सजा जरुर मिलनी चाहिए। सच तो यह है कि यह तोरण ही था जिसने राजा के ताज (मुकुट) को गिरा दिया था। अतः इसे फांसी अवश्य दी जानी चाहिए।“
अतः फाँसी के तख्ते तक मेहराब को लाया गया, अचानक एक दरबारी बोला, “राजन, जिसने आपके सिर को छुआ है, उसे हम इतनी शर्मिन्दगी के साथ फांसी पर कैसे लटका सकते हैं?” राजा ने चकित होकर कहा, “सच कहा।“ अब तक सारी भीड़ बैचेन होने लगी थी और जोर – जोर से बोलने लगी थी।
राजा ने उनके मूड को भांप लिया और कांपने लगा और वहां पर एकत्रित सब लोगों से कहा – “ दोष किसका है, इस बात की बारीकियों पर और विचार हम बाद में करेंगे। सारा देश फांसी देखना चाहता है, अतः किसी न किसी को फांसी अवश्य देना है, और वह भी तुरंत।“
इसलिए फांसी का फंदा थोडा ऊँचा लाया गया। अब एक-एक आदमी को बारी-बारी से नापकर देखा गया कि कौन इसके लिए फिट रहेगा. किन्तु एक व्यक्ति ही इतना लम्बा था जो सटीक बैठता था। केवल एक व्यक्ति। समस्या ख़त्म हुई। यह व्यक्ति राजा ही था। अतः शाही आदेशानुसार राजा को ही फांसी दे दी गयी।
राजा के मंत्रीगण बोले, “शुक्र है हमे कोई मिल तो गया, क्योंकि अगर कोई नहीं मिलता तो सारा शहर बेकाबू होकर राजा के खिलाफ हो जाता।“ “राजा अमर रहे!” मंत्रीगण बोले, “राजा अमर रहे!”
अब शहर के शासन के लिए एक राजा की आवश्यकता थी। इसलिए इस पर विचार-विमर्श किया गया। तब व्यवहारिक व्यक्ति होने के कारण उन्होंने मुनादी (ऐलान) करवा दिया। जिसमे कहा गया की (पूर्व) राजा के आदेशानुसार “ शहर के दरवाजे से गुजरने वाला जो भी अगला आदमी होगा, वही रीति-रिवाज के अनुसार, देश के शासक को चुनेगा। यह सब विधिवत रूप से लागु किया जायेगा।“
एक व्यक्ति उस शहर के दरवाजे से होकर गुजरा। वह व्यक्ति मुर्ख था। प्रहरी चिल्लाए, “रुको! और उससे कहा की तय करके जाओ की यहाँ का राजा कौन बनेगा?”
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“एक तरबूज” उस मुर्ख व्यक्ति ने उत्तर दिया। उससे और भी सवाल किये गए। लेकिन उसने हर सवाल का यही जवाब दिया “एक तरबूज” (क्योंकि वह तरबूज बहुत पसंद करता था।) पुराणी परम्परा के अनुसार मंत्रीगणों ने उसकी बात को स्वीकार कर लिया और एक तरबूज को मुकुट पहनते हुए बोले, “अब तुम्ही हमारे राजा हो।“ फिर वह उस तरबूज को उठाकर सिंहासन तक ले गए और सम्मानपूर्वक उसे वहां पर बिठा दिया।
यह कहानी बहुत वर्षो पहले की है। आप जब लोगों से पूछते हैं, “अब तो तुम्हारा राजा तरबूज जैसा लगता है। यह सब कैसे हुआ?” तो वे कहते हैं, “हा भाई यह सब परम्परा के अनुरूप चुनाव के कारण हुआ है। यदि राजा को तरबूज बनने में ख़ुशी है तो यह हमारे लिए भी ठीक है. क्योंकि जब तक वह हमे शांति और आजादी से रहने दे रहा है। तो हम कहने वाले कौन होते हैं की वह कैसा होना चाहिए।
यह कहानी इदरीस शाह की किताब “कारवाँ ऑफ ड्रीम्स’ से ली गयी है” यह कहानी ‘The Tale of Melon City’ का हिंदी अनुवाद है तथा इस कहानी को विक्रम सेठ द्वारा रचित “Collected Poem” में भी शामिल किया गया है । यह कविता सन 1981 में प्रकाशित हुई थी तथा इसे Mappings से लिया गया था ।